Wednesday, June 09, 2010

संदेशे तब और अब


यूँ ही बैठे बैठे
याद आए कुछ बीते पल
और कुछ ....
भूले बिसरे किस्से सुहाने
क्या दिन थे वो भी जब ....
छोटी छोटी बातों के पल
दे जाते थे सुख कई अनजाने

दरवाज़े पर बैठ कर
वो घंटो गपियाना
डाकिये की साईकल की ट्रिन ट्रिन सुन
बैचेन दिल का बेताब हो जाना
इन्तजार करते कितने चेहरों के
रंग पढ़ते ही खत को बदल जाते थे
किसी का जन्म किसी की शादी
तो किसे के आने का संदेशा
वो काग़ज़ के टुकड़े दे जाते थे

पढ़ के खतों की इबारतें
कई सपनों को सजाया जाता जाता था
सुख हो या दुख के पल
सब को सांझा अपनाया जाता था
कभी छिपा के उसको किताबों में
कभी कोने में लटकती तार की कुण्डी से
अटकाया जाता था

जब भी उदास होता दिल
वो पुराने खत
महका लहका जाते थे
डाकिये को आते ही
सब अपने खत की पुकार लगाते थे

पर अब ....

डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
अब हर सुख दुख का संदेशा
घर पर लगा फोन बता जाता है
रिश्तों में जम गयी बर्फ को
हर पल और सर्द सा कर जाता है
अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...

रंजना (रंजू ) भाटिया

32 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सही लिखा है..

अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...

उन्मुक्त said...

छोटे छोटे पल तो अब भी जीवन में रंग भर जाते हैं।

M VERMA said...

डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
जी हाँ बहुत बड़ा फर्क आ गया है
और आपने इस फर्क को बखूबी बयान किया है
सुन्दर रचना

संगीता पुरी said...

हर पल और सर्द सा कर जाता है
अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...

क्‍या खूब लिखा आपने !!

स्वाति said...

डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी

सही है..सुन्दर लिखा है..

vandana gupta said...

वक्त के सथ सब कुछ बदल जाता है ………अच्छी रचना।

Arvind Mishra said...

ये दुनिया फानी है -चार दिन की जिंदगानी है -ये विचार बेमानी हैं -कविताओं में न आपकी सानी है !

Udan Tashtari said...

सच!

बहुत सुन्दर रचना!!

prithwipal rawat said...

bahut sunder rachna hai!
Sadhuwaad!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खट आने का एहसास ही कुछ और होता था...बहुत खूबसूरती से लिखा है...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया रचना है!

मीनाक्षी said...

नए ज़माने में सन्देश भेजने के तरीके भी नए हो गए है... देश विदेश मे बैठे भाई बहन वेबकैम पर ही जन्मदिन और सालगिरह मना कर खुश हो जाते हैं...लेकिन पुरानी यादों का चित्रण ऐसा सजीव है कि दिल बार बार पुराने समय मे लौटना चाहता है

अजित गुप्ता का कोना said...

बहुत सशक्‍त रचना।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह भई रंजना जी बहुत सुंदर.

रंजन said...

बहुत सुन्दर... अब डाकिया केवल बिल लाता है...

Shekhar Kumawat said...

वाह वाह

प्रस्तुति...प्रस्तुतिकरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Alpana Verma said...

पढ़ के खतों की इबारतें
कई सपनों को सजाया जाता जाता था
सुख हो या दुख के पल
सब को सांझा अपनाया जाता था

सच लिखा है आप ने...
डाक से आते / बहुत इंतज़ार के बाद मिलते खतों की बात ही कुछ और थी..
**हाथ से लिखे खतों में बसा अपनापन अब ईमेल में कहाँ? जीवन यांत्रिक हो गया है.अच्छी कविता है.

विधुल्लता said...

डाकिया ,चिठ्ठी ,इन्तजार ,खुशबू,उसके साथ दुःख सुख राग विराग जाने क्या क्या ..लेकिन मेल के जमाने में अब वो सुख या दुख कहाँ
अच्छा लिखा है तुमने तुम्हारी भावनाओं की कद्र करती हूँ

दिगम्बर नासवा said...

बीते समय और आज की तेज़ रफ़्तार को बहुत करीब से महसूस कर ये रचना लिखी है आपने ...
इस रफ़्तार में हम संवेदनाएँ खोते जा रहे हैं ... छोटी छोटी इंसानी बातें .. खुशी के लम्हे कहीं खो गये हैं ...
बहुत अच्छा लिखा है आपने ...

Purva said...

wow! good one ma!

रंजना said...

कितना सही कहा आपने....एक एक शब्द सही...

मन को छू गयी आपकी यह मनमोहक रचना...लगा जैसे अपने ही मन के भाव पढ़ रही हूँ...
सचमुच चिट्ठियों की बात ही कुछ और थी....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

वक्त के साथ हर शै बदल जाती है।
सुंदर रचना।
--------
ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

Hello,
This composition of yours is one of your best ones so far!
Keep writing!
Cheers!

अंजना said...

वाह बहुत सुन्दर रचना....

अंजना said...

डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी

सच में सही लिखा है आपने ....
अच्छी रचना।

शरद कोकास said...

मुझे यह सुख अभी तक प्राप्त है इसलिये कि कुछ मित्र ऐसे हैं जो अब भी चिठ्ठियाँ लिखते हैं । और कुछ नही तो पत्रिकायें देने के लिये तो डाकिया आता ही है ।
वैसे आपको बता दूँ मेरे पास चिठ्ठियों का एक बहुत बड़ा कलेक्शन है और मैने अपने पिता 0 माता और रिश्तेदारों की चिठ्ठियों की एक किताब भी छपवाई है ।

राम त्यागी said...

बहुत सुन्दर, बहुत ही ज्यादा सुन्दर रचना ....पुराने दिनों की याद आ गयी ...डाकिया के खतों का आनंद और इंतजार की मीठी वेदना सब कुछ सामने आ गया :)

श्रद्धा जैन said...

डाकिया बना एक कहानी
रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी
अब हर सुख दुख का संदेशा
घर पर लगा फोन बता जाता है
रिश्तों में जम गयी बर्फ को
हर पल और सर्द सा कर जाता है

bahut sach kaha hai ......

Anonymous said...

शायद इसीलिए कहाजाता है कि वक्त के साथ हर शै बदल जाती है।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैं देरी से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ..... इतनी अच्छी रचना को देरी से पढ़ पाया.... बहत अच्छी और सशक्त रचना.....

निर्मला कपिला said...

अब ना दिल भागता है
लफ़ज़ो के सुंदर जहान में
बस हाय ! हेलो ! की ओपचारिकता निभा
कर लगा जाता है अपने काम में ...
रंजना जी बिलकुल सही बात है। बहुत दिन से आप से बात नही हो पाई और ब्लाग पर भी कम ही आ पाई हूँ अब ऐसा नही होगा। शुभकामनायें

Asha Joglekar said...

सही है । E-mail और text message के इस युग में चिठ्ठी और डाकिया दोनो की अहमियत खत्म हो गई है ।
चिठ्ठी लिखने की कला भी कहां बच पायेगी ।