Sunday, March 12, 2023

रंग चैत्र महीने के

 रंग चैत्र के ...


  चैत्र का महीना बदलाव का महीना है , नए रंग में कुदरत जैसे खुद से मिला कर सम्मोहित करती है। 

  अमृता ने इसी महीने से जुड़ा बहुत कुछ लिखा जो अद्भुत है। मुझे भी यह महीना बहुत ही आकर्षित करता है ।


चैत्र...

अमृता प्रीतम की रचनाओं में चैत्र बहुत खूबसूरती से रचा बसा है। इस चैत्र का महत्व उनकी कविता में क्यों और कैसे है। इस संबंध में अमृता ने लिखा है__

"साहिर को मिलने से पहले मेरे जीवन में सिर्फ रिक्तता थी।रिक्तता को किसी तिथि या ऋतु से नहीं जोड़ा जा सकता,पर साहिर से जब मुलाकात हुई वह चैत्र का महीना था। पहली बार भी और आगे एक चमत्कार की तरह ,कई बार ।"


  जब वह पहली बार मिला मेरी उम्र बीस या इक्कीस वर्ष की थी। दीवानगी का आलम तब भी देखा था, पर जब मेरी मोहब्बत ने दीवानगी के शिखर को छू लिया,वह 1953 के चैत्र में घटित हुआ।उसका मिलन था।इस मिलन में से मैने " सुनहेडे" संग्रह की सभी कविताएं लिखी। केवल एक कविता को छोड़ कर । जबकि यह पुस्तक 1955 में प्रकाशित  हुई पर उसके आरंभिक पेज पर 1953 के नाम पर " लिखा है।


कई चैत्र ऐसे भी आए,जब उससे मिलन नहीं हुआ,पर ऐसे जैसे चैत्र के महीने में चैत्र न आया हो। कविताएं हर चैत्र में लिखीं और फिर लिखने का प्रत्येक समय मेरे लिए चैत्र हो गया। इसी कारण आज उन सभी कविताओं को जिनमें मेरी मोहब्बत की दीवानगी है, चैत्र नामा भी कह सकती हूं।( मैं जमा तू)


  इस तरह अमृता की कविता में चैत्र एक प्रतीक की तरह फैलता है और उसकी सम्पूर्ण कविता की प्रतीकात्मक योजना में विशेष महत्व का बन जाता है।

जैसे ....

चैत्र ने पासा मोड़िआ

रंग दे मेले वास्ते फुल्ला ने रेशम जोड़ियां

तू नहीं आइया...


हिंदी अनुवाद 


चैत्र ने करवट बदली

रंगों के मेले के लिए 

फूलों ने रेशम जोड़ा

तू नहीं आया।


2) चैत्र दा वंजारा आइआ

बुचकी मोढ़े चाई वे।

असी विहाझी पिआर कथुरी

वेहंदी रही _ लुकाई वे।


हिंदी अनुवाद


चैत्र का बंजारा आया

गठरी कंधे पर उठाए

हमने खरीदी प्यार कस्तूरी

देखता रहा ,पूरा लोक।


3/

पंजा उत्ते है वीह सौ पंज समंत

चढ़िआ चैत्र महीने ते होई नावी

 हत्थी आपणी लिखे सुनेहडे मैं _

हत्थी आपणी आप वसूल पावीं।


हिंदी अनुवाद 

पांच ऊपर है बीस सौ पांच सम्वत

चढ़ा चैत्र का महीना हुई नौवीं

अपने हाथ से लिखे संदेश मैने

अपने ही हाथों से उन्हें वसूल पाना।


4)

चैत्र ने बूहा खड़काइआ

अज्ज दा गीत इस तरा बणिआ।


चैत्र ने द्वार खटखटाया

आज का गीत इस तरह बना।


5)

वहीआं लै के चैत्र आइआ

सज्जी अक्ख जिमी दी फरकी।


बही खाते को लेकर चैत्र आया 

दाईं आंख जमीं की फड़की।


6

एक चैत्र दी पुनिआं सी

कि चिट्टा दुध मेरे इश्क दा घोड़ा

देशा ते बदेशां नू गाहण तुरिया ( चैत्र नामा)


एक चैत्र की पूर्णिमा थी 

कि सफेद दूध सा मेरे इश्क का घोड़ा

देश विदेश को नापने चला।


अमृता ने प्रेम से जुड़ी अपनी सभी कविताओं को " चेतरनामा"कहा।इसी कारण चैत्र का प्रतीक इन कविताओं का स्थाई हिस्सा बना।


  यह प्रतीक कविता में फैलते हैं और अर्थ की बहु दिशाओं की ओर संकेत करतें हैं।अमृता का काव्य शिल्प इन प्रतीकों के सामर्थ्य और उसके विश्वास के साथ जुड़ा हुआ है। यह प्रतीक विधान उसका संदेश बनता है।वह कहती है__ 

नवीं रूत्त दा कोई संदेश देवां

ऐस कानी दी लाज नूं पालणा वे। ( सुनेहड़े)

( नई ऋतु का कोई संदेश दूं/ इस कलम की लाज को पालना है।)


तो इस संदेश में प्रतिकात्मक दृष्टि से रात से लेकर प्रभात के सूर्य तक सपनों से निकलते हुए एक यात्रा है। इसलिए कई बार वह इस प्रतीक विधान के उस संदेश से जुड़ते हुए कहती है__

 रात है काली बड़ी 

 उम्रां किसे ने बालीआं

चन सूरज कहे दीवे 

अजे वी बलदे नहीं।


रात है काली बड़ी

उम्र किसी ने जलाई

चांद सूरज कैसे हैं दीपक

अभी भी जलते नहीं।

    इसी के साथ अमृता के लिए सशक्त कविता की शक्ति आज़ादी का एहसास देने में है।उन्होंने रसीदी टिकट में लिखा

आग की बात है, तूने ही यही बात कही थी। लिख कर ऐसा लगा जैसे चौदह वर्ष का वनवास भोग कर स्वतंत्र हूं।

Tuesday, February 14, 2023

अमृत उद्यान

 फिर छिड़ी बात फूलों की ...


इस वक्त दिल्ली का हर कोना रंग बिरंगे फूलों से गुलजार है। मुगल गार्डन जिसका नाम अभी अभी बदल कर अमृत उद्यान किया गया ,खूबसूरत रंगबिरंगे फूलों से महक रहा है। हर तरह के फूल ,सौ से ज्यादा गुलाब की किस्में , ट्यूलिप के कई रंग के फूल ,औषधीय पौधे ,जिसमें पुदीना, लेमन ग्रास , अजवाइन, और भी कई किस्में ,बोनसाई उद्यान, और संगीत पर झूमते फाउंटेन , एक जादुई सा वातावरण जैसा दिखता है । 


लगभग पंद्रह सौ एकड़ में फैले इस उद्यान में खुशबू है ,पक्षियों की चहचहाट है, बंदरों की उछल कूद और मोर भी है।इन सब के साथ  स्कूल के आए बच्चों की हंसी वाकई अमृत उद्यान के इस उत्सव के नाम को सार्थक कर देती है। 


 यह अभी 26 मार्च तक है । ऑनलाइन बुकिंग फ्री है। आपको अपने हिसाब से टाइम स्लाट स्लेक्ट करने हैं। कुदरत के इस सुंदर नजारे को जी भर कर देख आइए।


इस लिंक पर आप इस सुंदर जगह को देख सकते हैं

अमृत उद्यान









Tuesday, February 07, 2023

जॉय गांव पिकनिक

 ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए,

मौसम नहीं मन चाहिए,

हर राह आसान हो जाएगी,

बस उसे करने का संकल्प चाहिए..














उम्र के साथ सीनियर सिटीजन जुड़ा हो और मन में घूमने की ललक हो तो फिर बात ही क्या है। इस बीते संडे को सीनियर सिटीजन ग्रुप के साथ "जॉय गांव पिकनिक स्पॉट" पर जाने का प्रोग्राम बना। जिसमे सब उमंग से भरे हुए थे ।

दस लोगों के ग्रुप में मेरी कॉलेज की फ्रेंड Kavita Nagi और उसके पतिदेव भी साथ थे। हम लोग पांच साल बाद मिल रहे थे तो वो खुशी बहुत ज्यादा थी। खूब एंजॉय किया। खूब बड़ा बना हुआ झज्जर रोड पर  यह गांव बहुत ही अच्छा लगा। बच्चों की तरह खूब झूले झूले । 7 डी मूवी देखी। बहुत टाइम से इच्छा थी "जिपलाइन "करने की वो की। मतलब एक बार फिर से हम सब ने बचपन को  जी लिया।कठपुतली तमाशा ,जादू के खेल ,मेंहदी ,गांव का खाना माहौल पानी भरना ,जो भी था सब खूब एंजॉय किया। सब लोगों का साथ बहुत ही प्यारा था। बाकी सब सदस्य पहली बार मिल रहे थे पर लगा ही नहीं कि अजनबी हैं। 


कल के बीते दिन की खूबसूरत झलक नीचे दिए लिंक में देख सकते हैं।

   जॉय गांव की वीडियो


 घूमते हुए यही पंक्तियां घूम रही थी 


उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में

फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

- बशीर बद्र

Thursday, January 26, 2023

खालीपन

 


खालीपन

जब भी खाना बनाती हूं

तो सामने वाले घर में भी वो भी खाना बना रही होती है

आमने सामने की खिड़की से अक्सर एक दूसरे को देखते हैं हम

जानती नहीं मैं उसे

पर जैसे हमारी आंखें बात कर रही होती हैं

क्या बनाया आज? क्या उन्हें पसंद आएगा? क्या बच्चे खाएंगे?

फिर एक खामोशी ,फिर नजरों का मिलना और पूछना

क्यों परिवार होते हुए भी अकेले हैं हम?

आंखों में खालीपन  क्यों है, इधर भी उधर भी?

आखिर किसको ढूंढा रहे हैं इस खिड़की से बाहर झंकते हुए हम?

इन्हीं सवालों के साथ खिड़की यहां भी बंद और वहां भी बंद


नीचे लिंक पर आप सुन भी सकते हैं 

Written by my daughter megha sahgal



बदला रंग मौसम का

 बदला रंग मौसम का



ली अंगडाई

सर्दी ने ....

मौसम की

बुदबुदाहट में ...

हवा के

खिलते झोंकों से ..

बहती मीठी बयार से

फ़िर पूछा है ..

प्रेम राही का पता


खिलते

पीले सरसों के फूल सा

आँखों में ...

हंसने लगा बसंत

होंठो पर

थरथराने लगा

गीत फ़िर से

मधुमास का ..

अंगों में चटक उठा

फ्लाश का चटक रंग

रोम रोम में

पुलकित हो उठा

अमलतास ...

कचनार सा दिल

फ़िर से जैसे बचपन हो गया


कैसा यह बदला

रंग मौसम का

अल्हड सा

हर पल हो गया......


बसंत पंचमी की आप सभी को बहुत बहुत बधाई 


 Ranju Bhatia...

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जश्न जारी है

 इमरोज़ होना आसान नहीं ...



इमरोज़ का जन्मदिन


Amrita Pritam ke saath चालीस साल जी कर लिखी 

इमरोज़ की कविताएं


"जश्न जारी है" जी की किताब से कुछ सुंदर रचनाएं


तेरे साथ जिए

वे सब खूबसूरत

दिन रात

अब अपने आप

मेरी कविताएं

बनते जा रहे हैं....


कब  और किस दिशा में कुछ सामने आएगा ,कोई सवाल पूछेगा ,यह रहस्य पकड़ में नही आता ..एक बार मोहब्बत और दर्द के सारे एहसास ,सघन हो कर आग की तरह लपट से पास आए और इश्क का एक आकार ले लिया ..


उसने पूछा ..कैसी हो ? ज़िन्दगी के दिन कैसे गुजरते रहे ?


जवाब दिया ..तेरे कुछ सपने थे .मैं उनके हाथों पर मेहन्दी रचाती रही .

उसने पूछा ..लेकिन यह आँखों में पानी  क्यों है ?


कहा ..यह आंसू नही सितारे हैं ...इनसे तेरी जुल्फे सजाती रही ..


उसने पूछा ...इस आग को कैसे संभाल कर रखा ?


जवाब दिया ...काया की डलिया में छिपाती रही


उसने पूछा -बरस कैसे गुजारे ?


कहा ....तेरे शौक की खातिर काँटों का वेश पहनती रही..


उसने पूछा ...काँटों के जख्म किस तरह से झेले?


कहा... दिल के खून में शगुन के सालू रंगती रही..


उसने कहा और क्या करती रही?


कहा -कुछ नही तेरे शौक की सुराही से दुखों की शराब पीती रही


उसने पूछा .इस उम्र का क्या किया


कहा कुछ नही तेरे नाम पर कुर्बान कर दी .[यह एक अमृता का साक्षात्कार है जो एक नज्म की सूरत में है ..]


अमृता ने एक जगह लिखा है कि वह इतिहास पढ़ती नही .इतिहास रचती है ..और यह भी अमृता जी का कहना है वह एक अनसुलगाई सिगरेट हैं ..जिसे साहिर के प्यार ने सुलगाया और इमरोज़ के प्यार ने इसको सुलगाये रखा ..कभी बुझने नही दिया ..अमृता का साहिर से मिलन कविता और गीत का मिलना था तो अमृता का इमरोज़ से मिलना शब्दों और रंगों का सुंदर संगम ....हसरत के धागे जोड़ कर वह एक ओढ़नी बुनती रहीं और विरह की हिचकी में भी शहनाई को सुनती रहीं ..


  प्रेम में डूबी हर स्त्री अमृता होती है या फिर होना चाहती है. पर सबके हिस्से कोई इमरोज नहीं होता, शायद इसलिए भी कि इमरोज होना आसान नहीं. ... किसी ऐसी स्त्री से से प्रेम करना और उस प्रेम में बंधकर जिन्दगी गुजार देना, जिसके लिए यह पता हो कि वह आपकी नहीं है।


जन्मदिन मुबारक इमरोज़


इस लिंक पर सुने इमरोज़ की कविताएं






Thursday, December 29, 2022

दुनिया के सात अजूबे दिल्ली में

 सात अजूबे


यह दिल्ली है,बस इश्क मोहब्बत प्यार .... सर्दी में दिल्ली की कुछ जगह बहुत ही सकून और गर्माहट से भर देती है। दिल्ली के पार्क और नई बनी यह कुछ जगह बढ़िया है देखने लायक ।


 #WasteToWonder एक ऐसी ही जगह है । यह निजामुद्दीन मेट्रो स्टेशन के पास है। यहां पुराने स्क्रैप से दुनिया के सात अजूबे बना रखें हैं। यह जगह inderprasthapark के बिल्कुल करीब है। और बहुत अच्छे से मेंटेन है। (near Hazrat Nizamuddin Metro Station, Block A, Ganga Vihar, Sarai Kale Khan, New Delhi, Delhi 110013)


  इसमें जाने का टाइम सुबह 11 से शाम 11 बजे तक है। टिकट सीनियर सिटीजन 65 से ऊपर की फ्री एंट्री है। 13 से 64 उम्र तक फिफ्टी रूपीज और बच्चों की 25 rs है। रात को साउंड एंड लाइट शो भी है। और यह स्क्रैप से बने सात अजूबे खूब सुंदर रोशनी से भर जाते हैं। अभी ठंड के कारण हमने रात वाले नजारे देखे नहीं, पर वाकई यह बहुत सुंदर दिखेंगे।


खाने की कोई वस्तु अंदर नहीं ले  जा सकते, किंतु अंदर बहुत सारे फूड स्टॉल है। जहां आप वेज नॉन वेज सब ले सकते हैं। रेट वाजिब है । कुछ महंगे कुछ ठीक ठाक।


   अंदर फूल ,पौधे और झरना भी है जिसकी कल कल पानी की आवाज़ मन मोह लेती है ,मेडिटेशन सा माहौल बना देती है। हर जगह सफाई और सुंदर फूलों से सजा हुआ है।  दिल्ली की सर्दी में इस सुंदर जगह में घूम आइए जब भी मौका लगे।